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Saturday, 16 March 2013

दरवाजे की हर दस्तक पर
तू ही तो दिखता है
हर सुबह की रौशनी में
कोई आया लगता है

मगर इन पथराई आँखों में
अब तू एक तसवीर ही है ,
बस याद ही पास है ....

सुख गयी हैं ये दो पोखर
नहीं मिलती इसे कोई धारा,
बस उन राहों को ताक रही
कभी तो जिंदा होंगी तुम्हारी यादें ...

बिखरें पड़े हैं मालों के मोती
कभी तो लायेगा तू धागे ,
कभी पिरोयेगा तू माला
कभी सजाएगा तू मंदिर

मिला भले ही तुझे नया मंदिर
नए फूलों का साथ मिला
मगर जिस मिटटी से बना तू फूल
सूख गयी है वो मिट्टी