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Saturday, 12 July 2014

एकलव्य

मास्टर साब ने दरवाज़े को धीरे से खोला
तो देखा बाहर एक १०-१२ साल का लड़का खड़ा था .
एकदम साधारण से कपड़ों में , रंग थोड़ा कम 
बाल मेहंदी के रंग के, शायद  कभी तेल नहीं लगाया होगा .
सहमा हुआ लेकिन जिज्ञासा तो चेहरे से टपक रही थी .

आवाज लगायी , कौन है रे ? कहाँ से आया है? 
अभी मैं नए बच्चों को टुशन नहीं दे रहा , भीड़ बहुत है .
धीरे से मन ही मन बोले ,ये प्राइवेट स्कूल वाला नहीं है , पता नहीं पैसे भी दे पायेगा नहीं ..
अच्छा है , स्कूल में टीचर नहीं पढ़ाते और घर पर  माँ बाप के पास टाइम नहीं .
थोड़ी आवाज ऊंची कर बोले - कौन सी जात का है और कहाँ पढता है ?
जी .. धीरे से आवाज आई - मैं सामने वाले बड़े बँगले से आया हूँ,

मालिक ने आपको बुलाया है - छोटे बाबू को आज पार्टी में जाना है ,
आप जल्दी से आकर उनका होमवर्क करा दीजिये .
गुरुपूर्णिमा के दिन , गुरु जी को शिष्य का विशेष काम करना था - बोला जल्दी आतें हैं. 
रुक , मैं तैयार हो कर साथ ही चलता हूँ .

रास्ते मैं चलते हुए , एक बार फिर उससे पूछ बैठे - तुझे पहले कभी देखा नहीं?
उसने धीरे से कहा - मास्टर साब , मैं भी आपका शिष्य हूँ. 
बहुत दिनों से छोटे बाबू  का होमवर्क मैं ही तो करता हूँ , आपके जाने के बाद . 
मास्टरसाब एकलव्य को सामने देख कर सोच में  पड गये - कुछ कह्ते तब तक वो बंगले के अंदर थे .
एकलव्य को बोला - बैठ जा , तुझे भी पढ़ा दूंगा . 
मगर वो तो एकलव्य था, कहाँ गुरु और विद्यालय उसे नसीब थे.
भागते हुए बोला - साब, मालकिन को "पानी और पेट्रोल बचाने" पर एक सभा में बोलने जाना है ,
मुझे जल्दी से उनकी बड़ी गाड़ी धोनी है और सभी गमलों में पानी देना है .

मैं आपको दीक्षा नहीं दे सकता , छोटे साब की काँपीओं  से पढ़ लूँगा - मैं आज का एकलव्य हूँ .

- प्रकाश कुमार