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Thursday, 15 August 2013

आज़ादी

हटाकर ग़ुलामी भी उन्होंने,
जश्ने आज़ादी ना  देख पाए,
दिला आज़ादी तो चले गए वो ,
 हम मुकम्मिल जहाँ भी न बना पाए, 

चोटें तो लगी होंगी उनको ,
 सूखे घाव ही जिंदा किये हमने ,
दर्द उन्हें तो गैरों ने दिए , 
 हमने तो  जख्म अपने को दिए

कुर्बानियों में थे उनके ख्वाब , 
तामील उन्हें हम न कर पाए,
सरहद पर मरने वालों को, 
एक आँशु भी हम न दे पाए, 

भूख , गरीबी और लाचारी , 
यही हमारी यारी है ,
प्राचीर लाल किले की , 
कहती यही कहानी है ,

कुछ अपने किये वादों की तकमील तो कर दो ,
कुछ उनके ख्वाबो को तब्दील भी कर दो,
----- प्रकाश 


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