हटाकर ग़ुलामी भी उन्होंने,
जश्ने आज़ादी ना देख पाए,
दिला आज़ादी तो चले गए वो ,
हम मुकम्मिल जहाँ भी न बना पाए,
चोटें तो लगी होंगी उनको ,
सूखे घाव ही जिंदा किये हमने ,
दर्द उन्हें तो गैरों ने दिए ,
हमने तो जख्म अपने को दिए,
कुर्बानियों में थे उनके ख्वाब ,
तामील उन्हें हम न कर पाए,
सरहद पर मरने वालों को,
एक आँशु भी हम न दे पाए,
भूख , गरीबी और लाचारी ,
यही हमारी यारी है ,
प्राचीर लाल किले की ,
कहती यही कहानी है ,
कुछ अपने किये वादों की तकमील तो कर दो ,
कुछ उनके ख्वाबो को तब्दील भी कर दो,
----- प्रकाश
Kavi Prakash, is it you blog?
ReplyDeleteyes big bro, pl write yr review...
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