उम्र एक के बाद दुसरे पड़ाव की तरफ जाने को आतुर है , कुछ अंग भी वास्तविकता कि तरफ इशारा कर रहे हैं. शायद , जिंदगी भी तम्मनाओ के भंवर से कुछ परेशान सी हो गयी है .. उफ्फ् कब तक !!! अगर गिरे , तो वो कंधे भी नहीं हैँ सहारा देने के लिए ... वो तो कब से नहीं थे , तालाश की थी लेकिन कहीं नहीं मिले , निःस्वार्थ कोई नहीं था. सीढियां मिलती गयी , कारवाँ बनता गया . लेकिन वो जो बिना किसी अपेक्षा के सिर्फ आशा दे, फिर नहीं मिला . उंचाईया मिलती गयीं लेकिन वो डर हमेशा बना रहा - गिरा तो कौन उठाएगा ? शायद इसी भय ने संभल संभल के चलना सिखा दिया .... नहीं तो ये उन्मुक्त गगन का पंछी पता नहीं कहाँ भटक गया होता. तुम साथ नहीं होकर भी रास्ता दिखा गए , भटकने नहीं दिया . तुम्हारे ना होने का भय ..... आज फिर . कुछ तो तुम्हे दिया नहीं , अपेक्षाए भी सार्थक नहीं कर पाया था की , तुमने अलविदा कह दिया था . शाय़द, तुम्हे जरूरत ही नहीं थी . मगर उस बच्चे को जो सिर्फ आकार में बड़ा हो गया, अभी भी कंधे कि तालाश है . वो रोना चाह्ता है , भयभीत है , निर्णय विहीन है .... कहाँ हो तुम ? मैं तो खुद किसी और का कन्धा बन गया हूँ ....पर मैं कहाँ अपनी होट लगाऊँ , कहाँ अपनी डर छुपावूं ....
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