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Friday, 15 September 2017

ऐ समय

ऐ समय, रुक जा
हो रही रोज़ रोज़ वो तेरे साथ बड़ी
हो रही बोझ मुस्कुराहट पर कहीं
हो रही रोक निरझारता पर कहीं,

खिलखिलाती होंठों पर
चहकते बोलों पर
मटकते आँखों पर

फ़िक्र तो कही आ नहीं रही ,

ख़ाली नैनों को
सपनों से भरने ना दो

सोने दो
ख़्वाब मत दो

एक पंछी को
उड़ने दो
दाने की इच्छा ना दो

सिर्फ़ खेलने दो चाँद से
मुट्ठी में करने की चाहत ना दो

ऐ समय
कुछ तो रुक जा
ज़रा धीरे तो जा ।


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