यह स्कूल के दिनों के दौरान हमारे एक दिन का जेब खर्च था ....मां देती थी, जब हम स्कूल के लिए जा रहे होते थे,.... असीम आनन्द मिलता था. चुपचाप जेब में डालने के बाद, नारायण चाट की आधी प्लेट के सपनों में स्कूल के लिए के लिए चल देते थे. नारायण चाट, स्कूल गेट के बाहर सबसे कीमती आइटम ....आधा प्लेट आलू चाट चार आना में और समोसा चाट के लिये दस और पैसे...इसका मतलब कि हमें एक और चववनी चाहिए होता.. अन्यथा, लंच समय के दौरान लाइन मैं खड़े हो .. चववनी की कीमत पर नारायण चाट का स्वर्गिक स्वाद का आनंद ....इस चववनी का धन्यवाद .. जिसमें स्कूल के दिनो में संतोष के कई पल दिया. ....रही बात मोहल्ला क्रिकेट की, सभी दोस्त चववनी से अपना योगदान दिया करते थे.हर एक के एक चववनी ...क्रिकेट की गेंद आ गई. एक सप्ताह के लिए आनंद, जब तक कोई पड़ोसी के घर में मार ना दे जहाँ से वापस मिलना मुश्किल था.एक बार खो दिया तो योगदान का एक और दौर शुरू...चववनी बहुत सशक्त थी और कई चेहरों पर मुस्कान लाती थी...लेकिन आज हम इसके अंत देखने जा रहे हैं ...नहीं जानता कितने ऐसी चीज़ें "मंहगाई डायन निगल रही है और निगल जाएगी …” ( Fb note of 30th June 2011)
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