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Friday, 14 September 2012

भ्रस्टाचार

मैं भ्रस्टाचार हूँ ,
मैं काल से परे हूँ
मैं सम्प्रदाय, जाती , पार्टी नहीं जानता ..
मुझे सभी गले लगाते हैं, लेकिन अपना कहने से शर्माते हैं.
मै गन्दा हूँ, लेकिन मुझमे डुबे सफ़ेद वस्त्रों मे ज्यादा दिखते हैं.

जो मेरे दोस्त नहीं ..
वो भूखे हैं ..नंगे हैं , सर पे छत नहीं ..
... या आवाज लगाते फिरते हैं

जो लिपट गए वो जिन्दा हैं, मगर रूह को भूल गए
दया, धर्म की फिकर नहीं ..न फरेब से डरते हैं .
एक बार जो उलझ गए ..सुलझाना उनको मुश्किल है.

लेकिन अब तो सच बोल दो
थक जाओगे , नकाब बदल के
फँस जाओगे, अपने ही जाले में
कब तक गिरगिट रह पाओगे.

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