परिंदे तो थे हम,
न आसमाँ का डर था ,
न जमीं की ख़ौफ,
ऐसा पिंजरों ने बाँधा ,
न अब उड़ने की चाहत, न जमीं पर चलने की हिम्मत
अपनी राह बनायीं खुद,
दिखाई राह दुनिया को,
अब बेगाने हैं अपने रास्ते ही,
न नयी रास्तों की चाहत , न नयी मंजिलों की खोज
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