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Saturday, 24 November 2012

एक किरायेदार की आत्मकथा

मैं किरायेदार हूँ , दर दर भटकने के बाद बड़ी मुश्किल से एक आशियाना मिला है.
कई मित्र मिले ..हाँ बातें तो वो मित्रों की तरह करते थे , लेकिन सिर्फ रेट की ...इस इलाके में तो 35 के नीचे नहीं ...हाँ , कुछ और अंदर की ओर जायेंगे तो , २५-२७ में मिल जायेगा. देखिये यहाँ से मार्किट नजदीक है , और १००% पॉवर बैकअप के साथ , इतना तो बनता ही है . देखिये , ये एरिया में तो सिर्फ मल्टी-नेशनल वालें हैं. .... अब अगर इनकी सोसाइटी में रहना चाहंगे, तो इतने से कम में क्या मिलेगा ?

और हाँ, जल्दी डिसाइड कर लो भाई, २-४ और लोगों के फ़ोन आ रखे हैं. वो तो आप हमारे जानने वालों में हो इसलिए इस घर के बारे में बता दिया ....हाँ , एक महीने का कमीसन बनता है. सब क्लियर होगा. अग्रीमेंट , तुरंत बना दूंगा.

अच्छा ये लो हॉउस ओनर से बात कर लो ...( फिर अपनी चमचमती मोबाइल को तीन बार साफ़ कर , हलके से बटन दबा कर , ...हाँ जी , ये लीजिये बात करिए ) .... जी नमस्ते मेंहरा जी , हाँ जी , हाँ जी ...मै, एक मल्टी-नेशनल वाला हूँ , बीबी और मै दोनों काम करतें हैं जी ....बच्चे तो इतने सीधे हैं की पूछो म़त, ... एक माता जी भी साथ रहती हैं . बस छोटा परिवार है जी ...आपके घर को सम्हाल के रखेंगे ... देखिये जी , ठीक है ...ठीक है ..एक बार फेस टू फेस मिलते हैं , फिर बात करेंगे. देखिये अभी तो हमने किराये पर देने को सोचा भी नहीं है ...कुछ दिन खाली ही रखना है ...हमें तो पैसे वैसे की कोई चाहत नहीं है ( तो फ्री में दे न ) ... चलिए , मिश्रा ने आपको बताया है की नहीं की इधर का रेट क्या है ? जी हाँ जी हाँ ...हमने तो २५ बोला हैं ...अरे नहीं जी २७ के निचे तो यहाँ कोई पुराने वाला भी नहीं है .... देखिये , लिमिटेड इनकम है ...तो फिर लिमिटेड एरिया ही देखिये ...फालतू का टाइम बर्बाद कर दिया . जी ...जी ...जी ...ऐसी बात मत करें , चलिए २६ में दे दे ....ठीक है , ..जरा मिश्रा को फ़ोन दीजिये ...अग्रेमेंट वगैरह करा देगा..और हाँ सोसाइटी चार्ज भी आपका , तीन महीने का एडवांस ..और ११ चेक एडवांस में. बाकि सब मिश्रा बता देगा ....( अब बचा क्या ?)... मिश्रा ने इसी बीच एक बार कालर सीधा कर के ....चलो भाई सस्ते में निपट गए ...कल ही एक ३० में लगाया था ....फ़ोन एक बार फिर शर्ट के पॉकेट में रखते हुआ ....चलिए ...कल आ जावूँगा, लीज अग्रीमेंट के साथ ....एडवांस , मेरा पेमेंट और चेक रेडी होना चाहिए ...हाँ और शिफ्टिंग में कुछ मदद चाहिए , तो बता देना ...मेरा भाई है वो शिफ्टिंग करता है ...सस्ते में ही हो जायेगा ...
११ महीने बाद ,....हेल्लो भाई साब , तो क्या विचा र है ....आगे भी रहना है या कहीं ट्रान्सफर हो गया ( कौन सी नौकरी हैं जहाँ ११ महीने में ट्रान्सफर हो जाता है !!!) लीज रिनव करना है की नहीं ? अरे मेहरा जी...जी ...अरे कहाँ , बड़ी रिक्वेस्ट कर के ट्रान्सफर रुकवाई है ..आपका घर तो मेरे लिए बड़ा शुभ है , प्रमोशन भी हो गया.....( गलती कर दि ना कह के ...) . चलिए अच्छी बात है , रहिये हमें भी कोई जल्दबाजी नहीं है ..मेरे चाचा के साले के बेटे का एक दोस्त पुछ रहा था की खाली हो बताइए ....बड़ा डिमांड बढ़ गया है , इस एरिया में ...तो कितना देंगे इस बार. ..जी जी जी ...१०% का रेट है ...रिसेशन का टाइम है ..कोई इन्क्रीमेंट भी नहीं ज्यादा हो रहा है ....देखिये भाई साब , आप पुराने है इसलिए २०% मान जावूँगा ...नहीं तो ३५ तो मुझे मिल रहा है ....अब आप सोच कर जल्दी बता दो ...
सोच सोच ...१ महीने तो फिर मिश्रा को देने होंगे ..और १५-२० उसका भाई लेगा शिफ्टिंग का ....फिर बाकि मुशीबत अलग से ....टाटा स्काई , आर ओ वाले को ..AC फिटिंग ....१-२ दिन ऑफिस की छुट्टी ...चलो इस मेहरा से ही बात कर ख़तम करो ..११ महीने तो नींद आएगी .....ठीक है मेहरा साब , ३५ मंजूर है .....
...अच्छा , एक और बात ..इस बार ५० चेक और ५० कैश ....अकाउंट में लेने पर बड़ा लफड़ा है
ऐ जी , कहीं से कुछ कटौती का प्लान करो .....एक घर ही बुक कर लेते हैं ....लेकिन क्या ठिकाना वो घर भी कब मिलेगा ..और कब तक इस शहर में दाना पानी है .....मुम्बई और बैंगलोर के मेहरा जी और मिश्रा तो सुना है , और भी स्पेशल हैं ....ये ११ का चक्कर तो लगा ही रहेगा ......

Tuesday, 18 September 2012

परिंदे तो थे हम

परिंदे तो थे हम,
न आसमाँ का डर था ,
न जमीं की ख़ौफ,
ऐसा पिंजरों ने बाँधा  ,
न अब उड़ने की चाहत, न जमीं पर चलने की हिम्मत
 
कभी रास्ते न पूछा,
अपनी राह बनायीं खुद,
दिखाई राह दुनिया को,
अब बेगाने हैं अपने रास्ते ही,
न नयी रास्तों की चाहत , न नयी मंजिलों की खोज

Monday, 17 September 2012

रिटेल व्यापार


चाहे वो कोक के आने का समय था या कंप्यूटर के बक्से का ऑफिस के एक कोने में अपना जगह बनाने की कश्मकश, समाज का एक तबका प्राचीनता की ओट में आधुनिकता के ऊपर पत्थर फेंकने से कभी नहीं कतराया. भले ही आज वो बेल के शरबत के साथ साथ कोक के एक घूंट का आनंद लेने में जरा भी शर्म नहीं महशूश करता है. कंप्यूटर तो दूर की बात , आज वो आई - फ़ोन और आई -पैड के बिना ५ मिनट भी नहीं रहता . आज वही कहानी रिटेल व्यापार की है.

बड़े खूबसूरत लगते हैं , हरे भरे खेत, गाँव की शांत और सरल जिन्दगी , लेकिन जो इस खूबसूरती के पीछे ताउम्र लगा देते हैं, चार पैसे भी नहीं जोड़ पाते. गाँव के साव जी का भाव तो वहीँ का वहीँ, उन्होंने तो शायद महंगाई शब्द सुना ही नहीं. वो भी क्या करें , गाँव से उठाकर छोटे शहर के लालाजी के दे आयेंगे और दो पैसे बना लेंगे . कम से कम उनके घर तो खुशहाली रहेगी. छोटे लालाजी बड़े शहर के बड़े लालाजी को और वो फैक्ट्री के मैंनेजर साब को बेच आयेंगे. वो गेंहू, जो मिटटी के घर वाले ने पांच रुपे सेर बेचा , कंपनी के सप्लाय चेन मैंनेजर ने १५०० रुपे क्विंटल ख़रीदा. उसके ऊपर सी ऍफ़ ओ साब ने बड़ी माथा पच्ची कर , सेल्स को १८० रुपे पैकेट बेचने को कहा. गेंहू से बने इस आंटे ने फिर अपनी उलटी यात्रा शुरु की. पहले बड़े डिसत्रिबुटर , फिर छोटे डिसत्रिबुटर फिर अंत में छोटे किराने की दुकान से २५० रुपे पैकेट बनकर किसान के बेटे के घर पंहुचा, जो बेचारा एक फैक्ट्री में ५००० रुपिया के दरमाह पर गुजरा कर रहा था.

गेंहू का खेत से पेट तक का सफ़र लम्बा तो था लेकिन इसमें दुःख सिर्फ पेट और खेत वाले को था, बाकि तो सभी आनंद में थे. जो इसी बीच इसमें कुछ और भी चीजे मिलाकर, आंटे के वजन के साथ साथ पेट को भी मुसीबत में डाल देते है.

अब जब वालमार्ट की कहानी आई, तो लालाजी और सावजी तो चिंता में ..अरे कहीं कोई सीधे गाँव न पहुँच जाये खरीदने को. क्या होगा उनका? कहीं उन्हें भी बड़ी खूबसूरत सी दिखने वाली दुकानों में बारकोड रिडर लेकर , कंप्यूटर पर न बैठना पड़े!!! और वो किसान का बेटा बरमूडा पहन के सामान खरीदने न पहुँच जाये ....

या फिर उनकी दुकान भी एक छोटी से वालमार्ट हो जाये....

( किसी व्यक्ति विशेष या समाज के लिए नहीं है , सिर्फ एक प्रयास है रिटेल व्यापार को समझने की ) - PT

Saturday, 15 September 2012

रिश्ते


किसी मंजिल की खोज में निकले थे..किसी कारवां की तलाश थी
कभी मिले सुबह के सुनहरे पल ..कभी बारिश ने भिंगोया ..कभी दुपहर की तीख मिली
कहीं शाम सुहानी थी तो कहीं रात अँधेरी थी ..
मंजिलें भी मिली, कुछ कारवां भी रास्ते में आये....
लेकिन वो छूटते चले गए जिनके साथ सपने सजाये थे...

कुछ रिश्ते भी छुट गए, कुछ नाते भी टूट गए
अब तो वो रास्ते भी भूल गए, जहाँ से चले थे

ये मंजिल की चाहत ... ये रिश्तों की खोज ...

Friday, 14 September 2012

मनमोहन का दूसरा जनम

मनमोहन का दूसरा जनम १९९० के उस दौर का याद दिला दिया ..जब हमें सोना गिरवी रखने की नौबत आ गयी थी . मंडल और कमंडल के द्वंध में तीसरे मोर्चे ने जनम लिया था . हम भी मंडल से अच्चुभ्ध थे, इसलिए नहीं की मंडल वाले पसंद नहीं थे बल्कि इसलिए की ये डर सताती थी की कोई नौकरी मिलेगी की नहीं? गिने चुने इंजीनियरिंग कॉलेज और फिर गिनी चुनी सरकारी नौकरियां ...क्या होगा ? हमने अंश और हर के खेल में, अंश के बढ़ने बारे में सोचा ही नहीं. हमेशा हर से अपनी हिस्सेदारी घटे हुआ देखा. अर्थशास्त्र सिर्फ
एक अतिरिक्त विषय था. हमारे एक मित्र के बड़े भाई ने उदारीकरण और लाईसेंस राज के ख़तम होने की बात समझाने की कई बार बहुत कोशिश की , लेकिन हमारे समझ से दूर ...कुछ कुछ कमंडल का असर हो गया था. प्रेस्त्रोइका और ग्लास्नोस्त की भाषा बहुत कठिन थी. ....
१० साल गुजरने के बाद , जब पीछे के कहानी समझ में आई तो हमें आंध्र के एक ब्रह्मिन और पजाब के सरदार का योगदान समझ में आया ... एक चाणक्य की कूटनीति जानता था तो दूसरा अर्थशास्त्र . देश को एक दिशा दी और दशा भी बदल गयी. कमंडल वाले भी ..चाहे स्वदेशी की रट लगायें, किया वही जो सरदार ने सिखाया. परिणाम सबके सामने था. इंजीनियरिंग कॉलेज इतने, जितने की इतिहास के भी नहीं ..और नौकरियां इतनी की , एक पत्थर फेंको तो वो एक अमेरिका से वापिस आ रहे को लग जाये. क्या परिवर्तन कर दिखाया... अंश बेहिसाब बढ़ने लगा , हर को सभी भूल गए ....लेकिन इस खेल का दूसरा पहलु भी निकल आया, बिना मेह्नत की रोटी के खेल में बहुतों को स्वीश बैंक का रास्ता भी मिल गया. बेचारा सरदार बेबश हो कर देखता रहा. 2G और कोल गेट में अर्थशास्त्र भटक गया .
समय फिर करवट बदल रही थी. हम फिर १९९० के शुरुवाती दौर में पहुच गए . ममता, मुलायम और मायावती फिर से अपनी पैर फैला चुके हैं . कमंडल अपनी आस्तित्वा की तालाश में , संसद को सड़क पर ले आये हैं . उनका अर्थ शास्त्र भी वही है लेकिन करें तो क्या करें?
लेकिन आज सरदार फिर से वो रास्ते पर निकल पड़ा है....अफ़सोस उसके साथ चाणक्य नहीं है. पता नहीं कितनी दूर चल पायेगा... इन २० सालों का अर्थशास्त्र की मेरी समझ यही कहती है ..चले चलो , यही रास्ता है ...एक ही समझ नहीं आती है ..ये खेल अगर साफ़ सुथरे तरीके से होता तो ज्यादा अच्छा होता. क्या किया जाये, लक्ष्मी होती ही ऐसी हैं !!!!

भ्रस्टाचार

मैं भ्रस्टाचार हूँ ,
मैं काल से परे हूँ
मैं सम्प्रदाय, जाती , पार्टी नहीं जानता ..
मुझे सभी गले लगाते हैं, लेकिन अपना कहने से शर्माते हैं.
मै गन्दा हूँ, लेकिन मुझमे डुबे सफ़ेद वस्त्रों मे ज्यादा दिखते हैं.

जो मेरे दोस्त नहीं ..
वो भूखे हैं ..नंगे हैं , सर पे छत नहीं ..
... या आवाज लगाते फिरते हैं

जो लिपट गए वो जिन्दा हैं, मगर रूह को भूल गए
दया, धर्म की फिकर नहीं ..न फरेब से डरते हैं .
एक बार जो उलझ गए ..सुलझाना उनको मुश्किल है.

लेकिन अब तो सच बोल दो
थक जाओगे , नकाब बदल के
फँस जाओगे, अपने ही जाले में
कब तक गिरगिट रह पाओगे.

Friday, 31 August 2012

कल की तालाश


नीली रात , खिड़की से चाँद आने को व्याकुल

चाँद को निहारते , कब डूब गए नींद के साये में

गहरी निद्रा ...सपनो की दुनिया ..कितनी खूबसूरत.. मनभावन

तभी सुनी एक कराह ... सुंदर कपड़ो में लिपटा, चमकती गाड़ी पर सवार

कौन है वो ...क्या सुन्दरता भी रोती है, मगर क्यूँ?

आ गयी एक और रात , आह!! जी भी न सका इस दिन को,

नए लक्ष्य अगले दिन की .... नयी उड़ान .क्या वो मिल पाएंगी?

कहाँ है मेरी मंजिल ..कैसे कर लूं दिन को मुट्ठी में ..?

आज तो पा न सके , कल की तालाश भी शुरु.

Tuesday, 24 July 2012

चववनी की यादें

यह स्कूल के दिनों के दौरान हमारे एक दिन का जेब खर्च था ....मां देती थी, जब हम स्कूल के लिए जा रहे होते थे,.... असीम आनन्द मिलता था. चुपचाप जेब में डालने के बाद, नारायण चाट की आधी प्लेट के सपनों में स्कूल के लिए के लिए चल देते थे. नारायण चाट, स्कूल गेट के बाहर सबसे कीमती आइटम ....आधा प्लेट आलू चाट चार आना में और समोसा चाट के लिये दस और पैसे...इसका मतलब कि हमें एक और चववनी चाहिए होता.. अन्यथा, लंच समय के दौरान लाइन मैं  खड़े हो .. चववनी की कीमत पर नारायण चाट का स्वर्गिक स्वाद का आनंद ....इस चववनी का धन्यवाद .. जिसमें स्कूल के दिनो में संतोष के कई  पल दिया. ....रही बात मोहल्ला क्रिकेट की, सभी दोस्त चववनी से अपना योगदान दिया करते थे.हर एक के एक चववनी ...क्रिकेट की गेंद आ गई. एक सप्ताह के लिए आनंद, जब तक कोई पड़ोसी के घर में मार ना दे जहाँ से वापस मिलना मुश्किल था.एक बार खो दिया तो योगदान का एक और दौर शुरू...चववनी बहुत सशक्त थी और कई चेहरों पर मुस्कान लाती  थी...लेकिन आज हम इसके अंत देखने जा रहे हैं ...नहीं जानता कितने ऐसी चीज़ें "मंहगाई डायन निगल रही  है और निगल जाएगी …”   ( Fb note of 30th June 2011)

सुनामी के मायने...

सुबह की सैर के बाद .. पार्क की बेंच पर मार्च माह की हवा का आनंद ले रहा था ... क्या अप्रैल के बाद भी यही महसूस होगी !!! प्रकृति भी बडी कटु है ...... यह पहले अपको खुशी देती है फिर वास्तविक स्वरूप दिखाती है....

टाइम्स ऑफ इंडिया के प्रथम पृष्ठ पर वोडाफोन 3 जी सेवाओं का एक बड़ा विज्ञापन था ... . ... कितनी दूर मानव जा सकता है? अभी तो सोच ही रहा था की पीछे से आवाज़ सुनी..... बेटा तुम क्या पढ़ रहे हैं? पीछे देख बिना ..असली प्रथम पृष्ठ पर चले गए और तुरंत जवाब दिया .. , सुनामी ने वास्तव में, जापान को बर्बाद कर दिया, एक शहर की  आधी आबादी   खत्म हो गई हैं और वहाँ परमाणु विकिरण का संकट है ... ... हजारों लोग, माँ पृथ्वी के अंदर समा गए हैं ...
तभी पीछे से जवाब आया ..बेटा,एक सुनामी कल इंडिया में आया था, ...कब .. कहाँ? दिलचस्पी से बगल में बैठे अंकल जी की ओर मुड़ गया ...उन्होंने बात को जारी रखा ... 29 रन 9 चले गये. ..रही सही कसर नेहरा ने एक ओभर में पुरी कर दी. पूरे 1 अरब की आबादी इस सुनामी में बह गया ...
मैं सोच रहा था ..हो सकता है .. एक समय पर सूनामी का दुनिया के लोगों के लिए अलग अलग मतलब होता हैं .. और चुपचाप विवियन रिचर्ड और नीना गुप्ता की बेटी के फैशन शो के कॉलम को पढ़ने लगा. (FB Note on13th March 2011)

लोकतंत्र का चौथा स्तंभ

पत्नी की सलाह के बावजूद, एक तरफ सभी यातायात नियमों रखते हुए..एक्सीलेटर पर पैर दबा के पूरे 110 BHP उपयोग करते हुए, मोबाइल पर दोस्त से बात करते गाड़ी चला रहा था ".... बस 1-2 हरे नोटों का मामला है". अचानक, एक पुलिस वाले ने कार को रोका, मैं बाहर आया और उसे झटपट कहा.. "चलो ले दे कर रफा दफा करो" .. उसने धीरे से बोला ... भाई साहब "कैमरामैन पीछे है" चुपचाप चालान कटा लो ... मैं सोच रहा था , लोकतंत्र का चौथा स्तंभ वास्तव में अपने पंख फैला चुका है और एक बड़ी भूमिका निभा रहा है. ( FB Note: 10th March 2011)

बाबा हरिहरनाथ होली खेलत सोनपुर में..

मेरी माँ ने कुछ विज्ञापन के बिखरे हुए कागज को उठाया चुपचाप और मुझे दिखाया ... बेटे होली आ गई है ... और परिवार में सभी के लिए कुछ कपड़ा खरीदारी की जरूरत है ..इस अवसर का महत्व नहीं देते हुए मैंने उससे कहा, कुछ समय के बाद खरीद लेंगे. ....मुझे लगता है, भूमण्डलीकरण और उपभोक्तावाद के बढ़ते दायरों, बड़े-बड़े माल में किसी कम्पनी के सेल आफर के बीच इस रस और आनंद के आन्तरिक उल्लास को भूल गया था ...

लेकिन जल्द ही माँ ने मुझे बचपन की याद दिला दी...होली पर एक नया कपड़ा मिलने की खुशी बहुत बड़ी होती थी..और भी बड़ा था सिले कपड़े प्राप्त करने के लिए इंतजार ...होलिका दहन के बारे में सोचते ही याद आती हैं , ..... कपड़े की मुश्त के चारों ओर तार से बुनी और दो दिन के लिए मिट्टी के तेल में रखने के बाद पूरी रात के लिए तैयार ... विशेष  गे ना  . 10-20 लोगों के द्वारा अंधेरी रात में इस आग के वस्तु को  घूमाने का दृश्य सच में लुभावना होता था ... और बीच में एक "चना के खेत" में कूदने... होरहा लगाना  ..... एक साहसिक कहानी से अधिक होता थी..... .पकडे  गये फिर... अगले दिन और भी यादगार..
हो सकता है पीचकारी का उपयोग थोड़ा जटिल था ...इसलिए हाथ प्रचलन में अधिक होता था. और लोगों को पता था कि रंग में रसायनों के प्रभाव अधिक हानिकारक है. उस जगह में, गोबर , मिट्टी बेहतर है. और हां, क्योंकि आपको  सिर्फ प्राकृतिक जल या नहर में कूदने की जरूरत होती थी. और सब कुछ बस एक छप में धुल जाता था.
फिर वहाँ सुंदर दोपहर शुरू...समूह के साथ घूमना ...एक दालान से दूसरे में जाना. और हर पल भांग पेडा के लिए प्रतीक्षा...हर किसी का सफेद कपड़ा, विशुद्ध लाल रंग में साराबोर... सातवें आसमान पर दिमाग .. झाल  और ढोलक की ध्वनि इस अवसर को और भी मादक  बना देता.फगुआ की बोल स्वर्ग पृथ्वी के करीब ला देता ... मैं अपनी आँखें बंद , गहरे विचार साथ गुनगुना रहा था...

... बाबा हरिहरनाथ होली खेलत सोनपुर में..  (  FB Note: 19th march 2011)

सत्याग्रह

सत्याग्रह, शब्द का एक लम्बा इतिहास और अर्थ है. गांधी ने लाया, मंडेला, आंग सान सू और कई विश्व नेताओं का उपयोग किया. मुन्ना भाई ने आधुनिक भारत में लोकप्रिय किया. लेकिन अन्ना और बाबा इसे नया आयाम पर लेकर आए. अब तक यह शासकों से मुक्ति के लिए इस्तेमाल किया गया था ... पहली बार यह अलग अर्थ के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. ... फिर भी, शासकों अब भी लगता है यह वही पुरानी उद्देश्य के लिए पर्दे के पीछे बैठे लोगों द्वारा इस्तेमाल किया जा सकता है. लेकिन एक बात साफ है जो कुछ गुप्त मकसद है, यह परमाणु हथियारों की तुलना में अधिक शक्तिशाली है. कोई नहीं  मरता है... लेकिन एक बड़ा और गंभीर प्रभाव छोड़ जाता है ... ..( FB Note: 4th June 2011)